Karni Mata Temple: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 22 मई को बीकानेर बॉर्डर पर स्थित करणी माता मंदिर के दर्शन करने जाएंगे. इस अवसर पर पीएम मोदी के साथ रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी मौजूद रहेंगे. पीएम मोदी यहां जनसभा को भी संबोधित करेंगे. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी की राजस्थान में यह सबसे बड़ी जनसभा होगी.
करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक शहर में स्थित है. भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान नाल एयरबेस को पाकिस्तान ने निशाना बनाने की नाकाम कोशिश की थी. इसलिए पीएम मोदी की इस यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
करणी माता मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां चूहों का जूठा प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है. दरअसल, इस मंदिर में 25 हजार चूहे हैं, जिन्हें करणी माता की संतान के रूप में देखा जाता है. इसलिए इस मंदिर को मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में इतने चूहे हैं कि आप पैरों को उठाकर नहीं चल सकते, बल्कि यहां पैरों को घसीटकर चलना पड़ता है क्योंकि पैर उठाकर चलने से पैरों के नीचे चूहे आने का खतरा रहता है, जो अशुभ माना जाता है.
करणी माता मंदिर में चूहों की पूजा
माता करणी जगदंबा मां का अवतार हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, माता करणी का जन्म साल 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था और उनका बचपन का नाम रिघुबाई था. करणी माता मंदिर की मैनेजमेंट कमिटी के सदस्य गिरीराज सिंह का कहना है कि करणी माता का विवाह साठिका गांव के देपोजी चारण से हुआ था, लेकिन सांसरिक जीवन से ऊबन के बाद करणी माता ने अपनी छोटी बहन गुलाब की शादी अपने पति देपोजी चारण से करवा दी और वे खुद माता की भक्ति में लीन हो गईं.
स्थानीय लोगों की मदद करने और माता की सेवा करने के कारण लोग उन्हें करणी माता के नाम से पुकारने लगे. आज भी करणी माता मंदिर में वो जगह मौजूद है, जहां वो अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थीं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, करणी माता 151 वर्ष तक जीवित रही थीं. उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने वहां उनकी मूर्ति स्थापित कर दी और पूजा करने लगे.
करणी माता मंदिर में काले और सफेद चूहे हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, एक बार करणी माता की संतान यानी उनके पति और उनकी बहन के पुत्र लक्ष्मण की कपिल सरोवर में डूबकर मृत्यु हो गई थी. इसके बाद करणी माता ने यमराज से लक्ष्मण को जीवित करने की मांग की. इस पर यमराज ने विवश होकर उसे चूहे के रूप में पुनर्जीवित किया था. तभी से कहते हैं कि उनके वंशज में जब भी किसी की मृत्यु होती है तो वो चूहे का जन्म लेकर इस मंदिर में आते हैं. आम बोलचाल में इन्हें काबा कहा जाता है. करणी माता मंदिर में मौजूद इन चूहों की विशेषता यह है कि ये सुबह 5 बजे और शाम 7 बजे आरती के दौरान अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं.